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नमो दुर्गतिनाशिन्यै मायायै ते नमो नमः, नमो नमो जगद्धात्र्यै जगत कर्ताये नमो नमः,
नमोऽस्तुते जगन्मात्रे कारणायै नमो नमः, प्रसीद जगतां मातः वाराह्यै ते नमो नमः ।
शक्ति के रूप में ब्रह्म की उपासना
देवी दुर्गा आदि शक्ति हैं, अर्थात सम्पूर्ण शक्ति का मूल स्रोत हैं। नारी रूप में भगवान की अभिव्यक्ति सनातन धर्म में अद्वितीय है। इसमें भी नारी स्वरूप को सर्वशक्ति संपन्न, प्रचण्ड व अजेय माना है। ‘श्रीमद देवी भागवत’ (देवी भागवत पुराण), ‘देवी उपनिषद’ व ‘दुर्गा सप्तशती’ (देवी महात्म्य) मातृरूप में ईश्वर की उपासना के आधार ग्रंथ हैं, यद्यपि ब्रह्म को मातृरूप में मानने का संदर्भ ऋग्वेद के ‘देवी सूक्त’ में भी है। इसी प्रकार जैसे महाभारत महाकाव्य से गीता निकली है वैसे ही देवी भागवत पुराण से देवी गीता निकली है। जहां अन्य पुराणों में देवी के प्रति श्रद्धा व्यक्त हुई है वहीं इन ग्रंथों में देवी को ब्रह्म अर्थात भगवती कहा गया है जबकि शैव व वैष्णव सम्प्रदाय में देवी को शिव या विष्णु की शक्ति माना है। ‘ललिता सहस्त्रनाम,’ जो ब्रह्मांड पुराण में आयी है, देवी मां के ब्रह्म रूप की महान स्तुति है। मां दुर्गा ममतामयी हैं, दुर्गति व भय नाशक हैं और मनोरथ पूर्ण करने वाली हैं। वह सभी दोषों का भी शमन करती हैं। बल, बुद्धि, विद्या व विवेक प्रदान करती हैं। वे जन्मदात्री हैं, दयालु हैं। किन्तु दुष्टों के लिए वह संहारक हैं, विकराल हैं, प्रचण्ड काली हैं। मातृशक्ति की स्तुति मनोकामनाओं की पूर्ति, शक्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त करने के साथ-साथ बुरे विचारों, असुरों और दुर्जनों का नाश करती है। मां दुर्गा का सर्वोत्तम मंत्र दुर्गाय नमः है। शक्ति उपासना में गीता प्रेस से प्रकाशित शक्ति अंक तथा देवीभागवतांक महत्वपूर्ण हैं।