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अष्टबलि या अठवा

ठवार का शाब्दिक अर्थ अष्टबलि या आठ बलियों से है, जो काली के गण कलुवा वेताल को दी जाती है। कलुवा वेताल स्थल मुख्य मंदिर के पश्चिम में घण्टाघर के पास स्थित है। यहां की आराध्य देवी वाराही को बलि नहीं चढ़ती। अष्ठबलि को बीराचार पूजन भी कहा जाता है। वर्ष 2015-16 तक अष्ठबलि में एक नर भैंसा, छह बकरे और एक नारियल की बलि दी जाती थी। वर्तमान में नर भैंसे की बलि प्रतिबंधित है किन्तु भैंसे के स्थान पर काले बकरे की बलि आज भी दी जाती है। यद्यपि वीराचार (बलि) तिथि के अनुरूप वर्षभर चढ़ती है परन्तु रक्षाबन्धन के पहले दिन ये अधिक संख्या में दी जाती हैं, इसलिए स्थानीय भाषा में यह अठवार का दिन भी कहलाता है। साल के माघ महीने, प्रत्येक एकादशी, पूर्णमाशी, सूर्य और चन्द्र ग्रहण तथा बग्वाल, जमानी एवं दे-च्वेख्योन को बलिदान वर्जित है। रक्षा बंधन से एक दिन पहले अठवार देना आवश्यक होता है। यदि किसी कारण से कोई अठवार नहीं आती है तो चार खामों के द्वारा अठवार देकर परंपरा का निर्वहन किया जातंा है। अठवार के दिन इन पशुओं से मंदिर की परिक्रमा कराई जाती है और लोग ढोल-नगाड़ों के साथ देवी-देवताओं की जय-जयकार करते हुए बलि स्थल तक पहुंचते हैं। मां के दरवार में नारियल से बलि देने का विधान भी है। यद्यपि नारियल का बलिदान भी अष्टबलि के समान ही भक्तों के लिए फलदायी माना जाता है ।

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